शनिवार, 20 जुलाई 2024

कविता 17

  कविता 17


कल तुमने यह पूछा था

वह कौन थी ? 

भाव मुखर थे, ग़ज़ल मौन थी ।


मेरी ग़ज़लों के शे’रों के

 मिसरों में 

चाहे वह अर्कान रहा हो

लफ्जों का औजान रहा हो

रुक्नो का गिरदान रहा हो

मक्ता था या मतला था

सबमे तुम्हारा रूप ढला था

मेरे भावों की छावों में 

जो लड़की  गुमसुम गुमसुम थी

वह तुम थी , हाँ वह तुम थी।


’अइसा तुमने काहे पूछा ?

तुम्हरा मन में ई का सूझा ?’


-आनन्द.पाठक-

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