शनिवार, 6 अप्रैल 2024

अनुभूतियाँ 136/23 : राम लला पर--[ भाग-2]

अनुभूतियाँ 136/23 : रामलला पर [ भाग-2]

 :1:

मंदिर का हर पत्थर पावन
प्रांगण का हर रज कण चंदन
हाथ जोड़ कर शीश झुका कर
राम लला का है अभिनंदन


:2:

हो जाए जब सोच तुम्हारी

राग द्वेष मद मोह से मैली

राम कथा में सब पाओगे

जीवन के जीने की शैली ।


:3: 

एक बार प्रभु ऐसा कर दो

अन्तर्मन में ज्योति जगा दो

काम क्रोध मद मोह  तमिस्रा

मन की माया दूर भगा दो ।


:4:

अनुभूतियाँ 135/22

 अनुभूतिया 135/22


:1:
एक भरोसा टूट गया जो
बाक़ी क्या फिर रह जाएगा
आँखों में जो ख़्वाब सजे है
पल भर में सब बह जाएगा

:2:
जाने की गर सोच रही हो
जाओ ,कोई बात नहीं फिर
अगर लौट कर आने का मन
खड़ा मिलूँगा तुम्हें यहीं फिर 

:3:
बिला सबब जब करम तुम्हारा
होता है, दिल घबराता है
मीठी मीठी बातें सुन सुन
जाने क्यों दिल डर जाता है

 :4:
शब्दों के आडंबर से कब
सत्य छुपा करता है जग में
बहुत दूर तक झूठ न चलता
गिर जाता है पग दो पग में

अनुभूतियाँ 134/21

  अनुभूतियाँ 134/21


:1:

मन का क्या है उड़ता रहता

एक जगह पर कब ठहरा है

लाख लगाऊँ बंदिश इस पर

पगला कब मेरी सुनता  है ।

;2:

पूजन अर्चन में जब बैठूँ

इधर उधर मन भागे फिरता

रिचा मंत्र बस है जिह्वा पर

जाने कहाँ कहाँ मन रमता 

:3:

उचटे मन की दवा न कोई

उजडी उजडी दुनिया लगती

खुशियाँ जैसे हुई पराई

आँखों मे बस पीड़ा  बसती

:4:

एक दिखावा सा लगता है

हाल पूछना -"जी कैसे हो?

बिना सुने उत्तर चल देना

अर्थहीन लगता जैसे हो ।

अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर

अनुभूतियाँ 133/20: होली पर
1
रंग गुलालों का मौसम है
महकी हुई फिज़ाएँ भी हैं
कलियाँ कलियाँ झूम रही हैं
बहकी हुई हवाएँ भी हैं

2
रंगोली में रंग भरे हैं
चाहत के, कुछ स्नेह प्यार के
आ जाते तुम एक बार जो
आ जाते फिर दिन बहार के

"राधा" लुकती छुपती भागें
'कान्हा' ढूँढे भर पिचकारी
ग्वाल बाल की टोली आती
देख गोपियाँ देवै गारी ।


4
होली का संदेश हमारा
"प्रेम मुहब्बत भाईचारा"
गले लगा कर रंग लगाना
पर्व है अपना अनुपम न्यारा

-आनन्द पाठक-  




अनुभूतियाँ 132/19 : चुनावी अनुभूतियाँ

 

चुनावी अनुभूतियाँ  132/19 : 


:1:

कल बस्ती में धुँआ उठा था

दो मज़हब टकराए होंगे ।

अफ़वाहों की हवा गर्म थी

लोग सड़क पर आए होंगे ।


;2:

जहाँ चुनावी मौसम आया

हवा साज़िशें करने लगती

झूठे नार वादों पर ही

जनता जय जय करने लगती 


;3:

जिस दल की औक़ात नही है

ऊँची ऊँची हाँक रहा है ।

अपना दर तो खुला छोड़ कर

दूजे दल में झाँक रहा है ।

:4:

झूठों की क्या बात करे हम

झूठ बोलने की हद कर दी

दो बोलें या दस बोलें वो

चाहे बोलें सत्तर अस्सी


-आनन्द.पाठक-