शनिवार, 20 जुलाई 2024

कविता 21

  कविता 21 : आया ऊँट पहाड़ के नीचे--


आया ऊँट पहाड़ के नीचे

देख रहा है अँखियाँ मीचे

अयँ ?

मुझसे भी क्या कोई बड़ा है?

यहाँ सामने कौन खड़ा है?

सच में ऐसा होता है क्या !

 मुझसे कोई ऊँचा है क्या !

जिसने देखा हो  झाड़ बस !

वह क्या समझे है पहाड़ क्या !


 अपने कद का रोब दिखाता

 अपना ही बस गाता जाता

क्या करता फिर एक आदमी

सिर्फ़ हवा में

मुठ्ठी खींचे, दाँते भींचे

आया ऊँट पहाड़ के नीचे

आया उँट पहाड़ के नीचे ।


-आनन्द.पाठक


कविता 20

 कविता 20 : जाने क्यों ऐसा लगता है---


जाने क्यों ऐसा लगता है ?

उसने मुझे पुकारा होगा

जीवन की तरुणाई में, अँगड़ाई ले

दरपन कभी निहारा होगा

शरमा कर फ़िर, उसने मुझे पुकारा होगा ।

दिल कहता है

जाने क्यों ऐसा लगता है ?

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कभी कभी वह तनहाई में 

भरी नींद की गहराई में 

देखा होगा कोई सपना

छूटा एक सहारा होगा, उसने मुझे पुकारा होगा

मन डरता है

जाने क्यों ऐसा लगता है ।

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सारी दुनिया सोती रहती

लेकिन वह 

रात रात भर जागा करता , तारे गिनता

टूटा एक सितारा होगा

फिर घबरा कर

उसने मुझे पुकारा होगा ।

जाने क्यों ऐसा लगता है ॥


-आनन्द.पाठक-


कविता 19

  कविता 19 : जाने यह कैसा बंधन है--


जाने यह कैसा बंधन है

गुरु-शिष्य का

वर्तमान का ज्यों भविष्य का ।

रिश्ता पावन ऐसे जैसे

स्तुति वाचन-ॠचा मन्त्र का,

गीत गीत से -छ्न्द छन्द का,

फ़ूल फ़ूल से - गन्ध गन्ध का,

जैसे पानी का चंदन से,

भक्ति भावना का वंदन से,

शब्द भाव का--नदी नाव का,

बिन्दु-परिधि का, केन्द्र-वृत्त का,

जीवन-घट का और मृत्तिका,

दीप-स्नेह का और वर्तिका ।

बाहों का मधु आलिंगन से

एक अदृश्य -सा अनुबंधन है ।

जाने यह कैसा बंधन है ।


-आनन्द.पाठक--


कविता 18

  कविता 18 : कह न सका मैं---


कह न सका मैं 

जो कहना था ।

मौन भाव से सब सहना था।

तुम ही कह दो।


शब्द अधर तक आते आते

ठहर गए थे।

अक्षर अक्षर बिखर गए थे।

आँखों में आँसू उभरे थे ।

 पढ़ न सका मैं |

जो न लिखा था

तुम ही पढ़ दो।

कह न सकी जो तुम भी कह दो

कह न सका मैं , तुम ही सुन लो।


-आनन्द.पाठक-


कविता 17

  कविता 17


कल तुमने यह पूछा था

वह कौन थी ? 

भाव मुखर थे, ग़ज़ल मौन थी ।


मेरी ग़ज़लों के शे’रों के

 मिसरों में 

चाहे वह अर्कान रहा हो

लफ्जों का औजान रहा हो

रुक्नो का गिरदान रहा हो

मक्ता था या मतला था

सबमे तुम्हारा रूप ढला था

मेरे भावों की छावों में 

जो लड़की  गुमसुम गुमसुम थी

वह तुम थी , हाँ वह तुम थी।


’अइसा तुमने काहे पूछा ?

तुम्हरा मन में ई का सूझा ?’


-आनन्द.पाठक-