सोमवार, 27 सितंबर 2021

ग़ज़ल 197

 212---212--212--2

बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन महजूज़


ग़ज़ल 197


वह अँधेरे में इक रोशनी है

एक उम्मीद है, ज़िन्दगी है


एक दरिया है और एक मैं हूँ

ज़िन्दगी भर की इक तिश्नगी है


नाप सकते हैं हम आसमाँ भी

हौसलों में कहाँ कुछ कमी है


ज़िक्र मेरा न हो आशिक़ी में

यह कहानी किसी और की है


लौट कर फिर वहीं आ गए हो

राहबर ! क्या यही रहबरी है ?


सर झुका कर ज़ुबाँ बन्द रखना

यह शराफ़त नहीं बेबसी है


आजकल क्या हुआ तुझ को ’आनन’

अब ज़ुबाँ ना तेरी आतशी है ।


-आनन्द.पाठक- 

शनिवार, 25 सितंबर 2021

ग़ज़ल 196

  ग़ज़ल 196

122----122-----122------122


किसी से वफ़ाई, किसी से ख़फ़ा हूँ

किया जो नहीं जुर्म उसकी सज़ा हूँ


किसी के लिए एक बदनाम शायर

किसी के लिए एक दस्त-ए-दुआ हूँ


कहीं भी रहो ढूँढ लेंगी निगाहें,

न मुझसे छुपे तुम, न तुमसे छुपा हूँ


ज़रा आसमाँ से उतर कर तो देखो

तुम्हारे लिए क्या से क्या हो गया हूँ


भरी बज़्म में ज़िक्र तेरा न आया

वो महफ़िल भरी छोड़ कर आ गया हूँ


मुझे क्या है लेना कलीसा हरम से

मुहब्बत में तेरी हुआ मुबतिला हूँ


अगर तुम ज़ुबाँ से सुनाना न चाहो

निगाहों से अपनी तुम्हें पढ़ रहा हूँ


न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’

अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ ।


-आनन्द.पाठक-


ग़ज़ल 195

 2212---1212---1212--12


ग़ज़ल 195


जो शख़्स पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े

वह शख़्स मर गया कतार में खड़े खड़े


पूछा किसी ने हाल मेरी ज़िंदगी का जब

दो बूँद आँसुओं के बारहा निकल पड़े


गुमनामियों में खो गए किसी को क्या ख़बर

तारीकियॊं से जो तमाम उम्र थे लड़े


कालीन-सा वो बिछ गए बस एक ’फोन’ पर

जिनसे उमीद थी कि लेंगे फ़ैसले कड़े


पुतले थे बीस फ़ुट के शह्र में लगे हुए

बौनी थी जिनकी शख़्सियत, थे नाम के बड़े


रहबर तुम्हारी रहबरी में शक तो कुछ नहीं

जाने को था किधर कि तुम किधर को चल पड़े


’आनन’ तुम्हारी बात में न वो तपिश रही

दरबारियों के साथ जब से तुम हुए खड़े


-आनन्द.पाठक-




ग़ज़ल 194

 ग़ज़ल 194

221---1222 // 221-1222


ख़ामोश रहोगे तुम,  दुनिया तो ये पूछेगी

कल तुम भी रहे शामिल, क्या आग लगाने में ?


तू लाख गवाही दे, सच ला के खड़ा कर दे

आदिल ही लगा जब ख़ुद, क़ातिल को बचाने में


मसरूफ़ बहुत हो तुम, मसरूफ़ इधर हम भी

नाकाम रहे दोनो, इक पल को चुराने में


इमदाद तो करता है, एहसाँ भी जताता है

ग़ैरत है जगी अपनी, दस्तार बचाने में


दो-चार क़दम पर था, दर तेरा मेरे दर से

तय हो न सका वह भी, ता उम्र ज़माने में


सुनने में लगे आसाँ, यह इश्क़ इबादत है

हो जाती फ़ना साँसे, इक प्यार निभाने में


वो ज़िक्र न आयेगा, उन वस्ल की रातों का

क्या ढूँढ रही हो तुम, ’आनन’ के फ़साने में


-आनन्द.पाठक- 

ग़ज़ल 193

 2122---1212---112/22


ग़ज़ल 193


आप महफ़िल में जब भी आते हैं

साथ अपने अना  भी लाते  हैं ।


चाँद तारों की बात तुम जानो

बात धरती की हम सुनाते हैं


जब भी आता चुनाव का मौसम

ख़्वाब क्या क्या न वो दिखाते हैं


वक़्त सबका हिसाब करता है

लोग क्यों ये समझ न पाते हैं


बेसबब बात वो नहीं करते

बेगरज़ हाथ कब मिलाते हैं 


अब परिन्दे न लौट कर आते 

गाँव अपना जो छोड़ जाते हैं


इस जहाँ की यही रवायत है

लोग आते हैं ,लोग जाते हैं


तुम भी क्यों ग़मजदा हुए ’आनन’

लोग रिश्ते न जब निभाते हैं


-आनन्द पाठक-



ग़ज़ल 192

 1222---1222---1222---1222


ग़ज़ल 192


अभी नाज़-ए-बुतां देखूँ  कि ज़ख़्मों के निशाँ देखूँ

मिले ग़म से ज़रा फ़ुरसत तो फिर कार-ए-जहाँ देखूँ


मसाइल हैं अभी बाक़ी ,मसाइब भी कहाँ कम हैं 

ज़मीं पर हो जो नफ़रत कम तो फिर मैं आसमाँ देखूँ


जो देखा ही नहीं तुमने , वहाँ की बात क्या ज़ाहिद !

यहीं जन्नत ,यहीं दोज़ख़ मैं ज़ेर-ए-आसमाँ  देखूँ


मुहब्बत में किसी का जब, भरोसा टूटने लगता

तो बढ़ते दो दिलों के बीच की मैं  दूरियाँ  देखूँ


लगा रहता है इक धड़का हमेशा दिल में जाने क्यूँ

उन्हें जब बेसबब बेवक़्त होते मेहरबाँ  देखूँ


किधर को ले के जाना था ,किधर यह ले कर  आया है

अमीरे-ए-कारवाँ की और क्या नाकामियाँ देखूँ


,सियासत में सभी जायज़ ,है उसका मानना ’आनन’ 

हुनर के नाम पर उसकी ,सदा चालाकियाँ देखूँ


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ


मसाइल = समस्यायें

मसाइब =मुसीबतें

धड़का = डर ,भय,आशंका

ज़ेर-ए-आसमाँ =आसमान के नीचे यानी धरती पर

अमीरे-ए-कारवाँ = कारवाँ का नायक ,नेता 


गुरुवार, 23 सितंबर 2021

कविता 09

 कविता 09

 

गुलाब बन कर कहीं खिले होते

जनाब ! हँस कर कभी मिले होते

किसी की आँख के आँसू

बन कर बहे होते

पता चलता

यह भी ख़ुदा की बन्दगी है

क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है ।

मगर आप को फ़ुरसत कब थी

साज़िशों का ताना-बाना

बस्ती बस्ती आग लगाना

थोथे नारों से

ख्वाब दिखाने से।

सब चुनाव की तैयारी है

दिल्ली की कुर्सी प्यारी है।

 

-आनन्द.पाठक-

 

कविता 09

 कविता 09

 

गुलाब बन कर कहीं खिले होते

जनाब ! हँस कर कभी मिले होते

किसी की आँख के आँसू

बन कर बहे होते

पता चलता

यह भी ख़ुदा की बन्दगी है

क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है ।

मगर आप को फ़ुरसत कब थी

साज़िशों का ताना-बाना

बस्ती बस्ती आग लगाना

थोथे नारों से

ख्वाब दिखाने से।

सब चुनाव की तैयारी है

दिल्ली की कुर्सी प्यारी है।

 

-आनन्द.पाठक-

 

शनिवार, 18 सितंबर 2021

कविता 08

 

-कविता-08[ अतुकान्त]

कितना आसान होता है

किसी पर कीचड़ उछालना

किसी पर उँगली उठाना

आसमान पर थूकना

पत्थर फेकना।

मासूम परिन्दों को निशाना बनाना

कितना आसान लगता है

किसी लाइन को छोटा करना

उसे मिटाना

आग लगाना, आग लगा कर फिर फ़ैलाना

अच्छा लगता है

ख़ुद को बड़ा समझने का

तुष्टि अहम की हो जाती है

अपने को कुछ बड़ा दिखाना।

उसको सब अवसर लगता है

सच से उसको डर लगता है ।

 -आनन्द.पाठक- 

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

एक सूचना = पुस्तक प्रकाशन के सन्दर्भ में


 एक सूचना =  पुस्तक प्रकाशन के सन्दर्भ में

मित्रो !

सूचित करते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है  कि आप लोगों के आशीर्वाद और शुभकामनाओं से मेरी सातवीं  पुस्तक -" सुन, मेरे माही ! "- [ माहिया- संग्रह ] प्रकाशित हो कर आ गई ।

इस से पूर्व मेरी -6-पुस्तकें [ 3- कविता/ग़ज़ल/गीत संग्रह और 3हास्य व्यंग्य़ संग्रह] प्रकाशित हो चुकी हैं । इन सभी पुस्तकों का प्रकाशन "अयन प्रकाशननई दिल्ली " ने किया है ।

"अयन-प्रकाशन’ को इस हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।

 

इस संग्रह में मेरी 450 माहिए संकलित है जिसमे से कुछ माहिए आप लोगो ने इस मंच पर समय समय पर अवश्य पढ़ी होंगी ।

इस संग्रह में मैने माहिए के उदभव, विकास और माहिए के वज़न और बह्र के बारे में भी चर्चा की है।

आशा करता हूँ कि इस संग्रह को भी पूर्व की भाँति आप सभी लोगो का स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहेगा।

 

पुस्तक प्राप्ति के लिए अयन प्रकाशन से सम्पर्क किया जा सकता है । उनका पता है संलग्न है ।

whatsapp no = 92113 12372 [ संजय जी ]

{नोट : प्रकाशक यह पुस्तक शीघ्र ही Amazon पर उपलब्ध करा देगा ]

 

पुस्तक मिलने का पता –

 अयन प्रकाशन

1/20 महरौली, नई दिल्ली 110 030


शाखा—जे-19/39 राजापुरी. उत्तम नगर , नई दिल्ली-59

Email : ayanprakashan@gmail.com

Website : www.ayanprakashan.com

 

   -सादर-

-आनन्द.पाठक-