कविता 09
गुलाब बन कर कहीं खिले होते
जनाब ! हँस कर कभी मिले होते
किसी की आँख के आँसू
बन कर बहे होते
पता चलता
यह भी ख़ुदा की बन्दगी है
क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है ।
मगर आप को फ़ुरसत कब थी
साज़िशों का ताना-बाना
बस्ती बस्ती आग लगाना
थोथे नारों से
ख्वाब दिखाने से।
सब चुनाव की तैयारी है
दिल्ली की कुर्सी प्यारी है।
-आनन्द.पाठक-
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