ग़ज़ल 250 [15E]
मूल बहर
21-121-121-122 = 21-122 // 21-122
कोई रहता मेरे अन्दर
ढूँढ रहा हूँ किसको बाहर ?
आलिम, तालिब, अल्लामा सब
पढ़ न सके हैं "ढाई आखर"
दर्द सभी के यकसा होते
किसका कमतर? किसका बरतर?
साथ तुम्हारा मिल जाए तो
क्या जन्नत ! क्या आब-ए-कौसर !
ज़ाहिद सच सच आज बताना
क्या है यह हूरों का चक्कर ?
रंज़-ओ-ग़म हो लाख तुम्हारा
कौन सुनेगा साथ बिठा कर
देख कभी दुनिया तू ’आनन’
नफ़रत की दीवार गिरा कर ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
यकसा =एक जैसा
बरतर = बढ़ कर
आब-ए-कौसर =स्वर्ग का पानी