ग़ज़ल 283
2122---2122---212
आप से है एक रिश्ता जाविदाँ
एक क़तरा और बह्र-ए-बेकराँ
एक सी है राजमहलों की कथा
वक़्त के हाथों मिटा नाम-ओ-निशाँ
छोड़ कर महफ़िल तेरी जाना हमे
वक़्त सबका जब मुक़र्रर हैं यहाँ
और भी दुनिया में हैं तेरी तरह
एक तू ही तो नहीं है सरगिराँ
चाहतों में ही उलझ कर रह गई
हर बशर की नामुकम्मल दास्ताँ
संग-ए-दिल भी चीख उठता देख कर
जब उजड़ता है किसी का आशियाँ
वह ज़माना अब कहाँ ’आनन’ रहा
ज़ाँ-ब लब तक जब निभाते थे ज़बाँ
-आनन्द.पाठक-