रविवार, 27 अगस्त 2023

अनुभूतियाँ 125/12

  अनुभूतियाँ 125/क़िस्त 12


497

जीवन है सौग़ात किसी की

जब तक जीना, हँस कर जीना

बात बात पर रोना क्या है

हर पल आँसू क्यों है पीना


498

देख सुबह की नव किरणों को

आशाएँ लेकर आती हैं

शीतल मन्द सुगन्ध हवाएँ

नई चेतना भर जाती हैं


499

कण कण में है झलक उसी की

अगर देखना चाहो जो तुम

वरना सब बेकार की बातें

नहीं समझना चाहो जो तुम


500

रोज़ शाम ढलते ही छत पर

एक दिया रख आ जाती हूं~

लौटोगे तुम इसी राह से

सोच सोच कर हुलसाती हूं~


अनुभूतियाँ 124/11

 क़िस्त 124/क़िस्त 11

 

 493

आग लगाने वाली बातें

बार बार दुहराती क्यों हो

ला हासिल था तब भी,अब भी 

माजी में फिर जाती क्यों  हो 

 

494

मिलना जुड़ना और बिछ्ड़ना

यह जीवन का क्रम है सुमुखी !

सदा बहारों का मौसम हो-

एक कल्पना है भ्रम है सुमुखी !

 

495

मंज़िल मिलना या ना मिलना

यह तुम पर निर्भर करता है

राह कहाँ इसमे दोषी है-

जो जैसा करताभरता है

 

496

बार बार यह कहते रहना

नहीं ज़रूरत तुम्हे किसी की

जिसको तुम ने ठुकराया हो

कहीं ज़रूरत पड़े उसी की


अनुभूतियाँ 123/10

 क़िस्त 123/क़िस्त 10

 

489

बातों में जब गहराई हो

सब सुनते हैंसब गुनते हैं

हवा हवाई बातों से भी

कुछ हैं जो सपने बुनते हैं

 

490

मीठी मीठी बातें उनकी

ज़हर भरें हैं दिल के भीतर

नए ज़माने की रस्में हैं

क्यों लेती हो अपने दिल पर

 

491

नफ़रत के बादल है अन्दर

कुछ दिन में जब छँट जाएँगे

प्रेम दया करुणा के सागर

खुद बह कर बाहर आएँगे

 

492

राह अभी माना दुष्कर है

उसके आगे राह सरल है

लक्ष्य साधना क्या मुश्किल है

इच्छा शक्ति अगर अटल है


 

अनुभूतियाँ 122/09

 क़िस्त 122/क़िस्त 9

 

485

जनता को क्या अनपढ़ समझा

लम्बी लम्बी फेंक रहे हो

जलता है घर और किसी का

अपनी रोटी सेंक रहे हो

 

486

सुख दुख जीवन के दो पहलू

बारी बारी आना जाना

आजीवन कब दोनों रहते

क्या हँसना क्या नीर बहाना

 

487

सबके अपने अपने मसले

सब की अपनी है मजबूरी

साथ निभानेवाला कोई-

हमराही है एक ज़रूरी

 

488

मीठी मीठी चिकनी चुपड़ी

समझ रहा हूँ बातें सारी

देख रहा हूँ पट के पीछे

शहद घुली है घात कटारी


 

अनुभूतियाँ 121/08

 क़िस्त 121/क़िस्त 8

 

481

बातों में जब गहराई हो

सब सुनते हैं सब गुनते हैं

हवा-हवाई बातॊ से भी-

कुछ हैं जो सपने बुनते हैं

 

482

साथ किसी का ठुकरा देना

अभी तुम्हारी आदत होगी

जीवन के एकाकी पथ पर

मेरी तुम्हें ज़रूरत होगी

 

483

साथ तुम्हारे होने भर से

हर मौसम बासंती मौसम

कट जाता यह सफ़र हमारा

साथ अगर तुम होते हमदम

 

484

किया  भरोसा मैने तुम पर

और तुम्हारी राहबरी का

कमरे में जयकार किसी का

बाहर नारा और किसी का

 

अनुभूतियाँ 120/07

 क़िस्त 120/क़िस्त 7

 

477

लौट चले अब ऎ मेरे दिल !

यादों की अपनी बस्ती में

जहाँ उसे छेड़ा करते थे

शाम-सुबह अपनी मस्ती में

 

478

बीत गए वो दिन खुशियों के

शेष रह गई याद पुरानी

जीवन के पन्नों पर बिखरी

एक अधूरी लिखी कहानी

 

479

पर्दे के पीछे से छुप कर

कौन नचाता है हम सबको

कौन है वो जो खुशियाँ देता

कौन है जो देता ग़म सबको

 

480

सब दरवाजे बंद हो गए

होता नही कभी जीवन में

एक रोशनी अंधियारों में

सदा छुपी रहती है मन में

अनुभूतियाँ 119/06

 क़िस्त 119/क़िस्त 6

 

473

देख रही हूँ दूर खड़े तुम

प्यास हमारीतुम हँसते हो

बात नई तो नहीं है ,प्रियतम !

श्वास-श्वास  में  तुम बसते हो

 

474

आज नहीं तो कल लौटेंगी

गईं बहारें  फिर उपवन में

लौटोगी तुम फूल खिलेंगे

मेरे इस वीरान चमन में

 

 

475

निश-दिन याद करूंगा तुमको

मेरा हक़ है इन यादों पर

अनजाने जो किया था तुमने

मुझे भरोसा उन वादों पर

 

476

भाव समर्प्ण नहीं हॄदय में

व्यर्थ तुम्हारी सतत साधना

पूजन-अर्चन से क्या होगा

मन में हो जब कुटिल भावना

अनुभूतियाँ 118/05

 क़िस्त 118/क़िस्त 5

 

 

469

आ अब लौट चले मेरे दिल !

यादों की भूली बस्ती में

जहाँ उन्हे छेड़ा करते थे

अपनी धुन में मस्ती मे

 

470

 

निश-दिन याद करूँगा तुम को

हक़ है मेरा उन यादों पर

जाने अनजाने जो किया था

मुझे भरोसा उन वादों पर

 

471

छोड़ गई तुमख़ुशी तुहारी

लेकिन याद तुम्हारी बाक़ी

तुम्हे मुबारक नई ज़िंदगी

मुझको रहने दो एकाकी

 

472

शाम ढलेगी गोधूली में

सब चरवाहें घर जाएंगे

हमको भी तो जाना होगा

कितने दिन तक रह पाएँगे


 

अनुभूतियाँ 117/04

 क़िस्त 117/क़िस्त 4

 

465

अगर तुम्हे लगता हो ऐसा

साथ छोड़ना ही अच्छा है

जिसमे खुशी तुम्हारी होगी

मुझे तुम्हारा दिल रखना है

 

466

जा ही रहे हो लेते जाना

टूटा दिल यहसपने सारे

क्या करना अब उन वादों का

तड़पाएँगे साँझ-सकारे ।

 

467

जहाँ रहो तुम ख़ुश रहना तुम

खुल कर जीना हाँसते गाते

अगर कभी

कुछ वक़्त मिले तो

मिलते रहना आते-जाते

 

468

छोड़ गई तुम ख़ुशी तुम्हारी

लेकिन याद तुम्हारी बाक़ी
तुम्हें मुबारक नई ज़िंदगी

मुझको रहने दो एकाकी

अनुभूतियाँ 116/03

 क़िस्त 116/क़िस्त 3

461

झगड़ा करना रूठ भी जाना

और मुझी पर दोष लगाना

कितना सब आसान तुम्हे है

बेमतलब का रार बढ़ाना

 

462

छोड़ गया जब कोई अचानक

दिल में सूनापन रहता है

एक ख़लिश सी रहती दिल में

दिल चुप हो कर सब सहता है

463

तू तू मैं मैं  से क्या होना

जो होना था हो ही गया अब

उन बातों का क्या करना है

ख़्वाब जगा था ,सो भी गया अब

 

464

हम दोनों के दर्द एक से

लेकिन दबा रहें हम दोनों

कहने को तो बात बहुत है

लेकिन छुपा रहे हम दोनों

अनुभूति 115/02

 क़िस्त 115/क़िस्त 2

 

457

शायद तुम को खुशी इसी में

तुम जीती हो हारा हूँ मैं

अच्छा कोई बात नहीं है

फिर भी एक किनारा हूँ मैं

 

458

और कोई होता समझाता

तुमको समझाना मुश्किल है

एक लकीर खिंची पत्थर पर

और तुम्हारा पत्थर दिल है

 

459

सौ बातों की एक बात है

सब कुछ होता दिल के अन्दर

मानों तो ’देवत्व’ छुपा है

वरना पत्थर तो है पत्थर

 

460

इतना हठ भी ठीक नहीं है

टूट गया दिल फिर न जुड़ेगा

राख बची रह जाएगी फिर

अरमानों का धुँआ उड़ेगा

अनुभूतियाँ 114/01

 क़िस्त 114/क़िस्त 1

453

कब आना था तुमको लेकिन

निश दिन मैने राह निहारे

हर आने जाने वाले से

पूछ रहा हूँ  साँझ-सकारे।

 

454

जिन रिश्तों में तपिश नहीं हो

उन रिश्तों को क्या ढोना है

हाय’ हेलो तक ही रह जाना

रस्म निबाही का होना है

 

455

कैसे मैं समझाऊँ तुमको

नही समझना ना समझोगी

तुम्ही सही होमैं ही ग़लत हूँ

बिना बात मुझ से उलझोगी

 

456

बात बात पर नुक़्ताचीनी

बात कहाँ से कहाँ ले गई

क्या क्या तुमने अर्थ निकाले

जहाँ न सोचावहाँ ले गई

शनिवार, 26 अगस्त 2023

अनुभूतियाँ 113

 अनुभूतियाँ 113


449

भली रही या बुरी रही थी ,

एक लगन की एक अगन थी,

तेरे घर की राहें दुष्कर,

लेकिन चाहत आजीवन थी ।

 

 

450

दुनिया चाहे जो भी समझे,

’अनुभूति’ के रंग हमारे,

वक़्त कसौटी पर जाँचेगा,

रंग निखर आएँगे  सारे ।

 

451

जब हमने ख़ुद राह चुनी है,

राह-ए-मुहब्बत, राह फ़ना की

दोष किसी को फिर देना क्या

किसने छोड़ी राह वफ़ा  की ।

 

452

सच का साथ न छोड़ा मैने,

द्वन्द  रहा आजीवन मन में.

साँस साँस बन हर पल उतरी,

’अनुभूति’ मेरे जीवन में ।

अनुभूतियाँ 112

 445

क़तरा क़तरा मिल जाता है

बन जाता है एक समन्दर,

भेद खत्म फिर हो जाता है

क्या था बाहर, क्या था अन्दर ।

 

446

कुछ तो कमियाँ सब के अन्दर

सबको क्या सब कुछ हासिल है ?

कब होता इन्सान फ़रिश्ता

हस्ती किसकी कब कामिल है ?

 अनुभूतियाँ 112

447

यह "अनुभूति" नही किसी की

तेरी, मेरी, हम सबकी है,

फ़र्क यही कि मैने कह दी

और सभी ने बस सह ली है ।

 

448

प्रेम समर्पण एक साधना

चलता नहीं दिखावा इसमें

पाने की कुछ चाह न रहती

बस देना ही देना जिसमें