क़िस्त 124/क़िस्त 11
493
आग लगाने वाली बातें
बार बार दुहराती क्यों हो
ला हासिल था तब भी,अब भी
माजी में फिर जाती क्यों हो
494
मिलना जुड़ना और बिछ्ड़ना
यह जीवन का क्रम है सुमुखी !
सदा बहारों का मौसम हो-
एक कल्पना है भ्रम है सुमुखी !
495
मंज़िल मिलना या ना मिलना
यह तुम पर निर्भर करता है
राह कहाँ इसमे दोषी है-
जो जैसा करता, भरता है
496
बार बार यह कहते रहना
नहीं ज़रूरत तुम्हे किसी की
जिसको तुम ने ठुकराया हो
कहीं ज़रूरत पड़े उसी की
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