क़िस्त 123/क़िस्त 10
489
बातों में जब गहराई हो
सब सुनते हैं, सब गुनते हैं
हवा हवाई बातों से भी
कुछ हैं जो सपने बुनते हैं
490
मीठी मीठी बातें उनकी
ज़हर भरें हैं दिल के भीतर
नए ज़माने की रस्में हैं
क्यों लेती हो अपने दिल पर
491
नफ़रत के बादल है अन्दर
कुछ दिन में जब छँट जाएँगे
प्रेम दया करुणा के सागर
खुद बह कर बाहर आएँगे
492
राह अभी माना दुष्कर है
उसके आगे राह सरल है
लक्ष्य साधना क्या मुश्किल है
इच्छा शक्ति अगर अटल है
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