क़िस्त 122/क़िस्त 9
485
जनता को क्या अनपढ़ समझा
लम्बी लम्बी फेंक रहे हो
जलता है घर और किसी का
अपनी रोटी सेंक रहे हो
486
सुख दुख जीवन के दो पहलू
बारी बारी आना जाना
आजीवन कब दोनों रहते
क्या हँसना क्या नीर बहाना
487
सबके अपने अपने मसले
सब की अपनी है मजबूरी
साथ निभानेवाला कोई-
हमराही है एक ज़रूरी
488
मीठी मीठी चिकनी चुपड़ी
समझ रहा हूँ बातें सारी
देख रहा हूँ पट के पीछे
शहद घुली है घात कटारी
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