क़िस्त 121/क़िस्त 8
481
बातों में जब गहराई हो
सब सुनते हैं सब गुनते हैं
हवा-हवाई बातॊ से भी-
कुछ हैं जो सपने बुनते हैं
482
साथ किसी का ठुकरा देना
अभी तुम्हारी आदत होगी
जीवन के एकाकी पथ पर
मेरी तुम्हें ज़रूरत होगी
483
साथ तुम्हारे होने भर से
हर मौसम बासंती मौसम
कट जाता यह सफ़र हमारा
साथ अगर तुम होते हमदम
484
किया भरोसा मैने तुम पर
और तुम्हारी राहबरी का
कमरे में जयकार किसी का
बाहर नारा और किसी का
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