रविवार, 31 अक्तूबर 2021

गीत 72

 गीत : ---मौसम बदलेगा


सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी-पानी का हो मौसम
मौसम का आना-जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा ।---मौसम बदलेगा॥

अगर कभी फ़ुरसत  हो तुमको, उसकी आँखों में पढ़ लेना
जिसकी आँखों में सपने थे  जिसे ज़माने ने लू्टे  हों ,
आँसू जिसके सूख गए हो, आँखें जिसकी सूनी सूनी
और किसी से क्या कहता वह, विधिना ही जिससे रूठें हो

दर्द अगर हो दिल में गहरा, आहों में पुरज़ोर असर हो
 चाहे जितना पत्थर दिल हो, आज नहीं तो कल पिघलेगा ।---कल पिघलेगा ।।

दुनिया क्या है ? जादूघर है, रोज़ तमाशा होता रहता
देख रहे हैं जो कुछ हम तुम, जागी आँखों के सपने हैं 
रिश्ते सभी छलावा भर हैं, जबतक मतलब साथ रहेंगे
जिसको अपना समझ रहे हो, वो सब कब होते अपने हैं 

जीवन की आपाधापी में, दौड़ दौड़ कर जो भी जोड़ा 
चाहे जितना मुठ्ठी कस लो, जो भी कमाया सब फिसलेगा ।--सब फ़िसलेगा।

जैसा सोचा वैसा जीवन, कब मिलता है, कब होता है
जीवन है तो लगा रहेगा, हँसना, रोना, खोना, पाना
काल चक्र चलता रहता है. रुकता नहीं कभी यह पल भर
ठोकर खाना, उठ कर चलना, हिम्मत खो कर बैठ न जाना

आशा की हो एक किरन भी और अगर हो हिम्मत दिल में
चाहे जितना घना अँधेरा, एक नया सूरज निकलेगा ।---सूरज निकलेगा।

विश्वबन्धु, सोने की चिड़िया, विश्वगुरु सब बातें अच्छी
रामराज्य की एक कल्पना, जन-गण-मन को हुलसा देती 
अपना वतन चमन है अपना, हरा भरा है खुशियों वाला
लेकिन नफ़रत की चिंगारी बस्ती बस्ती झुलसा देती ।

जीवन है इक सख्त हक़ीक़त देश अगर है तो हम सब हैं
झूठे सपनों की दुनिया से कबतक अपना दिल बहलेगा ।---दिल बहलेगा।


-आनन्द पाठक-

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल 199

 ग़ज़ल 199


122---122---122---122


कहीं तुम मेरा आइना तो नहीं हो ?

मेरे हक़ की हर्फ़-ए-दुआ तो नहीं हो ?


ये माना तुम्हारे मुक़ाबिल न कोई

मगर इसका मतलब ख़ुदा तो नहीं हो 


ये लम्बी ख़मोशी डराती है मुझको

कहीं बेसबब तुम ख़फ़ा तो नहीं हो


हवाओं में ख़ुशबू अभी तक तुम्हारी

कहीं तुम ख़ुद अपना पता तो नहीं हो ?


ख़ला से मेरी लौट आती सदाएँ

कहीं तुम मेरे हमनवा तो नहीं हो ?


बहुत लोग आए तुम्हारे ही जैसे

फ़ना हो गए, तुम जुदा तो नहीं हो


किसी दिन तुम्हें ढूँढ लूँगा यह ’आनन’

मेरे दिल मे हो, लापता तो नहीं हो


-आनन्द.पाठक-



मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

गीत 71

             एक गीत : दीपावली पर [2021]


आज दीपावली, ज्योति का पर्व है

दीप की मालिका हम सजाते चलें ।


आज मिल कर सजाएँ नई अल्पना

झूमने नाचने का करें सिलसिला

पर्व ख़ुशियों का है और उल्लास का

भूल जाएँ जो कोई हो  शिकवा,गिला


मन बँटा हो भले, रोशनी कब बँटी

प्यार का दीप दिल में जलाते चलें ।


धर्म के नाम पर व्यर्थ उन्माद में

चेतना मर गई, भावना मर गई

मन के अन्दर की सब खिड़कियाँ बन्द हैं

उनके कमरे में कितनी घुटन भर गई


सोच नफ़रत भरी है, जहर भर गया

इन अँधेरों को पहले मिटाते चलें ।


झोंपड़ी का अँधेरा करें दूर हम

झुग्गियों बस्तियों में जला कर दिए

एक दिन चाँदनी भी उतर आएगी

आदमी जो जिए दूसरों के लिए ।


अब अँधेरों में कोई न भटके कहीं

सत्य की राह क्या है ? दिखाते चलें


आज दुनिया खड़ी ले के परमाणु बम्ब

ख़ौफ़ फैला फ़िज़ां में जिधर देखिए

लोग हाथों में पत्थर लिए हैं खड़े

कब तलक बच रहेगा  सर,  देखिए


विश्व में हो अमन, चैन हो, प्रेम हो

बुद्ध के सीख- संदेश गाते चलें ।

आज दीपावली,ज्योति का पर्व है। दीप की मालिका हम सजाते चलें। 


-आनन्द.पाठक-


शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल 198

 122---122---122----122


ग़ज़ल 198

तेरे इश्क़ में इब्तिदा से हूँ राहिल

न तू बेख़बर है, न मैं हीं हूँ ग़ाफ़िल


ये उल्फ़त की राहें न होती हैं आसाँ

अभी और आएँगे मुश्किल मराहिल


मुहब्ब्त के दर्या में कागज की कश्ती

ये दर्या वो दर्या है जिसका न साहिल


जो पूछा कि होतीं क्या उलफ़त की रस्में

दिया रख गई वो हवा के मुक़ाबिल


इबादत में मेरे कहीं कुछ कमी थी

वगरना वो क्या थे कि होते न हासिल


अलग बात है वो न आए उतर कर

दुआओं में मेरे रहे वो भी शामिल


कभी दिल की बातें भी ’आनन’ सुना कर

यही तेरा रहबर, यही तेरा आदिल ।


-आनन्द. पाठक-


राहिल = यात्री


शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

कविता 10

 आज

----2-अक्टूबर- गाँधी जयन्ती----


अँधियारों में सूरज एक खिलानेवाला
जन गण के तन-मन में ज्योति जगानेवाला
गाँधी वह जो क्षमा दया करूणा की मूरत
फूलों से चटटानों को चटकाने वाला


क़लम कहाँ तक लिख पाए गाँधी की बातें
इधर अकेला दीप, उधर थी काली रातें
तोड़ दिया जंजीरों को जो यष्टि देह से
बाँध लिया था मुठ्ठी में जो झंझवातें


आज़ादी की अलख जगाते थे, गाँधी जी
’वैष्णव जण” के पीर सुनाते थे, गाँधी जी
सत्य अहिंसा सत्याग्रह से, अनुशासन से
सदाचार से विश्व झुकाते थे, गाँधी जी


गाँधी केवल नाम नहीं है, इक दर्शन है
लाठी, धोती, चरखा जिनका आकर्षन है
सत्य-अहिंसा के पथ पर जो चले निरन्तर
गाँधी जी को मेरा सौ-सौ बार नमन है


-आनन्द.पाठक-