सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

माहिया 97

 


 क़िस्त 97/07 [होली 2023]

1

होली के दिन आए

आए न बालमवा

मौसम भी तड़पाए


2

रंगों का है मौसम

खेल रहे कान्हा

राधा भी कहाँ है कम


3

है प्रेम का रंग ऐसा

रंग अलग कोई

चढ़ता ही नहीं वैसा


4

होली का मज़ा क्या है

रंग लगा मन पे

इस तन में रखा क्या है


5

गोरी हँस कर बोली

" मन ही नहीं भींगा

फिर कैसी यह होली


-आनन्द.पाठक-


माहिया 96

 क़िस्त 96/06

1

तुम पास जो आओ तो

प्यास मेरी देखो

खुल कर जो पिलाओ तो


2

कब प्यास बुझी सब की

नदियाँ प्यासी हैं

प्यासा है समन्दर भी


3

इक बार ही नाम लिया

नाम तेरा लेकर

जग ने बदनाम किया


4

मैं कैसे कह पाता

छू देती हो तुम

मन और महक जाता


5

मौसम महका महका

रंग लगा ऐसे

मन है बहका बहका


-आनन्द.पाठक-

माहिया 95

 क़िस्त 95/05


1

सपनों के शीश महल

टूट ही जाना है

सच, आज नहीं तो कल


2

चलने की तैय्यारी

आ मेरी माहिया

कुछ और निभा यारी


3

मेरी भी गली में आ

ओ मेरी माहिया !

 अपनी तो झलक दिखला


4

कांटों से भरी राहें

हों तेरे घर की

फिर भी तुमको चाहें


5

आसान नहीं होतीं

प्रेमनगर वाली

गलियाँ सँकरी होती


-आनन्द.पाठक-

माहिया 94

 क़िस्त 94/04


1

कुछ यादें रह जाती

सूनी आँखों में

आँसू बन कर आतीं


2

कोई मिल जाता है

राह-ए-मुहब्बत में 

फिर क्यों खो जाता है?


3

कलियाँ सहमी सहमी

माली की नज़रें

दिखतीं बहकी बहकी


4

कुछ अपनी सीमाएँ

मर्यादा की हैं

हम भूल नहीं जाएँ


5

मैं इक प्यासा राही

मिलना है मुझको

उस पार मेरा माही 


-आनन्द.पाठक-

माहिया 93

 


क़िस्त 93/ 03


1

दुनिया की छोड़ो तुम

क्या करना इसका

दिल से दिल जोड़ो तुम


2

ख़्वाबों में मिला करना

लौट के आऊँगा

इक दीप जला रखना


3

अब क्या मजबूरी है

और सुना माहिया

तेरी बात अधूरी है


4

जानी पहचानी सी

लगती है तेरी

कुछ मेरी कहानी सी


5

बाग़ों के बहारों का

रंग चढ़ा मुझ पर

कलियों के नज़ारों का


-आनन्द.पाठक-

माहिया 92

 क़िस्त 92/ 02


1

अब और न कर बातें

झेल चुकी हूँ मैं

हर बार तेरी घातें ।


2

टुकड़ा टुकड़ा जीवन

जोड़ के जीते हैं

जीने का है बन्धन


3

गो, सुनने में तीखे

पैसों के आगे

सब रिश्ते हैं फीके


4

आदाब मुहब्बत के

कुछ तो निभाते तुम

अन्दाज़ नज़ाक़त के


5

कैसी थी मुलाकातें

कुछ तो बता, गुइयाँ !

क्या क्या थी हुई बातें


-आनन्द.पाठक-

माहिया 91

 क़िस्त 91 /01

1

सावन के महीने में

आग लगी कैसी

गोरी के सीने में 


2

भूले से आ जाते

सावन में साजन

झूले पे झुला जाते


3

सावन की फुहारों से

जलता है तन-मन

जैसे अंगारों से


4

रुक ! सुन तो ज़रा बादल !

कैसे है प्रियतम?

यह पूछ रही पायल 


5

सावन की हरियाली

मस्त हुआ मौसम

कलियाँ भी मतवाली

-आनन्द.पाठक-