क़िस्त 94/04
1
कुछ यादें रह जाती
सूनी आँखों में
आँसू बन कर आतीं
2
कोई मिल जाता है
राह-ए-मुहब्बत में
फिर क्यों खो जाता है?
3
कलियाँ सहमी सहमी
माली की नज़रें
दिखतीं बहकी बहकी
4
कुछ अपनी सीमाएँ
मर्यादा की हैं
हम भूल नहीं जाएँ
5
मैं इक प्यासा राही
मिलना है मुझको
उस पार मेरा माही
-आनन्द.पाठक-
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