क़िस्त 92/ 02
1
अब और न कर बातें
झेल चुकी हूँ मैं
हर बार तेरी घातें ।
2
टुकड़ा टुकड़ा जीवन
जोड़ के जीते हैं
जीने का है बन्धन
3
गो, सुनने में तीखे
पैसों के आगे
सब रिश्ते हैं फीके
4
आदाब मुहब्बत के
कुछ तो निभाते तुम
अन्दाज़ नज़ाक़त के
5
कैसी थी मुलाकातें
कुछ तो बता, गुइयाँ !
क्या क्या थी हुई बातें
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें