अनुभूतियाँ 125/क़िस्त 12
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जीवन है सौग़ात किसी की
जब तक जीना, हँस कर जीना
बात बात पर रोना क्या है
हर पल आँसू क्यों है पीना
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देख सुबह की नव किरणों को
आशाएँ लेकर आती हैं
शीतल मन्द सुगन्ध हवाएँ
नई चेतना भर जाती हैं
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कण कण में है झलक उसी की
अगर देखना चाहो जो तुम
वरना सब बेकार की बातें
नहीं समझना चाहो जो तुम
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रोज़ शाम ढलते ही छत पर
एक दिया रख आ जाती हूं~
लौटोगे तुम इसी राह से
सोच सोच कर हुलसाती हूं~
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