क़िस्त 116/क़िस्त 3
461
झगड़ा करना रूठ भी जाना
और मुझी पर दोष लगाना
कितना सब आसान तुम्हे है
बेमतलब का रार बढ़ाना
462
छोड़ गया जब कोई अचानक
दिल में सूनापन रहता है
एक ख़लिश सी रहती दिल में
दिल चुप हो कर सब सहता है
463
तू तू मैं मैं से क्या होना
जो होना था हो ही गया अब
उन बातों का क्या करना है
ख़्वाब जगा था ,सो भी गया अब
464
हम दोनों के दर्द एक से
लेकिन दबा रहें हम दोनों
कहने को तो बात बहुत है
लेकिन छुपा रहे हम दोनों
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