अनुभूतियाँ 113
449
भली रही या बुरी रही थी ,
एक लगन की एक अगन थी,
तेरे घर की राहें दुष्कर,
लेकिन चाहत आजीवन थी ।
450
दुनिया चाहे जो भी समझे,
’अनुभूति’ के रंग हमारे,
वक़्त कसौटी पर जाँचेगा,
रंग निखर आएँगे सारे ।
451
जब हमने ख़ुद राह चुनी है,
राह-ए-मुहब्बत, राह फ़ना की
दोष किसी को फिर देना क्या
किसने छोड़ी राह वफ़ा की ।
452
सच का साथ न छोड़ा मैने,
द्वन्द रहा आजीवन मन में.
साँस साँस बन हर पल उतरी,
’अनुभूति’ मेरे जीवन में ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें