बुधवार, 10 अगस्त 2022

ग़ज़ल 245

 ग़ज़ल 245 [10E]


1212---1122---1212---112/22


चुभी है बात उसे कौन सी पता भी नहीं

कई दिनों से वो करता है अब ज़फ़ा भी नहीं


हर एक साँस अमानत में सौंप दी जिसको

वही न हो सका मेरा , कोई गिला भी नहीं


किसी की बात में आकर ख़फ़ा हुआ होगा

वो बेनियाज़ नहीं है तो आशना भी नहीं


ज़ुनून-ए-शौक़ ने रोका हज़ार बार उसे

ख़फ़ा ख़फ़ा सा रहा और वह रुका भी नहीं


ख़याल-ए-यार में यह उम्र काट दी मैने

कमाल यह है कि उससे कभी मिला भी नहीं


तमाम उम्र उसे मैं पुकारता ही रहा 

सुना ज़रूर मगर उसने कुछ कहा भी नहीं


हर एक शख़्स के आगे न सर झुका ’आनन’

ज़मीर अपनी जगा, हर कोई ख़ुदा भी नहीं


-आनन्द.पाठक-

पोस्टेड 17-07-22


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