बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस सालिम
212-----212-----212
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन
रफ़्ता रफ़्ता कटी ज़िन्दगी
चाहे जैसी बुरी या भली
सर झुकाया न मैने कभी
एक हासिल यही बस ख़ुशी
उम्र भर का अँधेरा रहा
चार दिन की रही चाँदनी
मैं भी कोई फ़रिश्ता नहीं
कुछ तो मुझ में भी होगी कमी
क्यों जलाते नहीं तुम दिया
क्यों बढ़ाते हो बस तीरगी
दिल में हो रोशनी तो दिखे
रब की तख़्लीक़ ,कारीगरी
जब से दिल हो गया आइना
करता रहता वही रहबरी
दिल में ’आनन’ के आ जाइए
और फिर देखिए आशिक़ी
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