शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 30

 2122----2122----2122

फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन
बह्र-ए-रमल मुसद्द्स सालिम
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लोग अपने ग़म सुनाने में लगे हैं
एक हम हैं ग़म भुलाने में लगे हैं

बेसबब लगते हैं उनको ज़्ख़्म मेरे
वो ख़राश-ए-कफ़ दिखाने में लगे हैं

जानता हूँ आप की है क्या हक़ीक़त
कौन सा चेहरा चढ़ाने में लगे हैं ?

आप तो सच के धुले लगते नहीं हैं
फिर बहाने क्यों बनाने में लगे हैं ?

जो जगे हैं लोग तो चलते नहीं हैं
और वो मुर्दे जगाने में लगे हैं

सच की बातों का ज़माना लद गया
झूट की जय जय मनाने में लगे हैं

लाश गिन गिन कर हवादिस में वो,"आनन’
’वोट’ की कीमत लगाने में लगे हैं



-आनन्द-



ख़राश-ए-कफ़ =हथेली की खरोंच

हवादिस = हादिसा का बहुवचन

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