काहे नS रंगवा लगउलु हो गोरिया ...काहे नS रंगवा लगउलु ?
अपने नS अईलु न हमके बोलऊलु ,’कजरी’ के हाथे नS चिठिया पठऊलु
होली में मनवा जोहत रहS गईलस. केकरा से जा के तू रंगवा लगऊलु
रंगवा लगऊलु......तू रंगवा लगऊलु...
काहे केS मुँहवा फुलऊलु संवरिया ? काहे केS मुँहवा बनऊलु ?
रामS के संग होली सीता जी खेललीं ,’राधा जी खेललीं तS कृश्ना से खेललीं
होली के मस्ती में डूबलैं सब मनई नS अईलु तS तोहरे फ़ोटुए से खेललीं
फोटुए से खेललीं... हो फ़ोटुए से खेललीं....
अरे ! केकराS से चुनरी रंगऊलु ?, सँवरिया ! केकरा से चुनरी रंगऊलु ?
’रमनथवा’ खेललस ’रमरतिया’ के संगे, ’मनतोरनी ’ खेललस संघतिया के संगे
दुनिया नS कहलस कछु होली के दिनवा ,खेललस ’जमुनवा’ ’सुरसतिया’ के संगे
सुरसतिया के संगे.....सुर सतिया के संगे....
केकरा केS डर से तू बाहर नS अईलु ,नS अंगवा से अंगवा लगउलु
काहें गोड़धरिया करऊलु संवरिया.....
काहें गोड़धरिया करऊलु.?..............काहें न रंगवा लगऊलु ?
-आनन्द.पाठक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें