शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 50

 


वो शहादत पे सियासत कर गए
मेरी आंखों में दो आँसू भर गए

लोग तो ऐसे नहीं थेक्या हुआ ?
लाश से दामनकशां ,बच कर गए

देखने वाले तमाशा देख कर
राह पकड़ी और अपने घर गए

ये शराफ़त थी हमारी ,चुप रहे
क्या समझते हो कि तुम से डर गए?

सद गुनाहें याद क्यों आने लगे
बाअक़ीदत जब भी उनके दर गए

साथ लेकर क्या यहाँ से जाओगे
जो गये हैं साथ क्या लेकर गए

दिल के अन्दर तो कभी ढूँढा नहीं
ढूँढने आनन’ को क्यूँ बाहर गए
 
दामनकशां = अपना दामन बचा कर निकलने वाला
बाअक़ीदत =श्रद्धा पूर्वक


-आनन्द.पाठक-

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