एक युगल गीत :किसकी यह पाती है-----
[ बचपन की प्रीति थी, जब बड़ी हो गई, दुनिया की रस्म ,रिवायात खड़ी हो गईं। हालात ऐसे की परवान न चढ़ सकीं ।जीवन के सुबह की एक लिखी हुई पाती ,जीवन के शाम में मिलती गुमनाम ।
जीवन के सारे घटनाक्रम स्मृति पटल पर किसी चलचित्र की भाँति उभरते गए----। उस पाती में कुछ बातें नायक ने कही---कुछ नायिका ने कही। आप स्वयं समझ जायेंगे।
किसकी यह पाती है ,जीवन के नाम
मिलती है शाम ढले , मुझको गुमनाम ?
पूछा है तुमने जो मइया का हाल
खाँसी से , सर्दी से रहतीं बेहाल
लगता है आँखों में है ’मोतियाबिन’
कैसी हो तुम बोलो? कैसी ससुराल?
पकड़ी हैं खटिया औ’ लेती हरिनाम
कहती हैं-’करना है अब चारो धाम’
हाँ ,मइया की ’मुनिया’ है अच्छी भली
मइया से कह देना , है पूतो फली
देखा था मइया में सासू’ का रूप
’बिधिना’ के आगे कब है किसकी चली !
जो चाहेंगे भगवन, तो अगले जनम
मइया से कह देना हमरा परनाम
अब की जो सावन में जाना हो गाँव
बचपन मे खेले थे कागज की नाव
मन्नत के धागे जो मिल कर थे बाँधे
पड़ती है उस पर क्या पीपल की छाँव ?
सावन के झूले अब आते हैं याद
रहता है होठों पर बस तेरा नाम?
सुनती हूँ गोरी अँगरेजन सौगात
’कोरट’ में शादी कर लाए हो साथ
चलती हो ’बिल्ली’ ज्यों ’हाथी’ के संग
मोती की माला ज्यों ’बन्दर’ के हाथ
हट पगली ! काहे को छेड़े है आज
ऐसे भी करता क्या कोई बदनाम !
कैसी थी मजबूरी ? क्या था आपात?
छोड़ो सब बातें वह , जाने दो, यार !
कितनी हैं बहुएँ औ’ कितने संतान ?
कैसे है ’वो’ जी ? क्या करते हैं प्यार ?
कट जाते होंगे दिन पोतों के संग
बहुएँ क्या खाती हैं फिर कच्चे आम ?
जाड़े में ले लेना ’स्वेटर’ औ’ शाल
खटिया ना धर लेना ,फिरअब की साल
मिलने से मीठा है मिलने की चाह
काहे को करते हो मन को बेहाल
सुनती हूँ -करते हो फिर से मदपान
क्या ग़म है तुमको जो पीते हर शाम
अपनी इस ’मुनिया’ को तुम जाना भूल
जैसे थी वह कोई आकाशी फूल
अपना जो समझो तो कर देना माफ़
कब मिलते दुनिया में नदिया के कूल !
दो दिल जब हँस मिल कर गाते हैं गीत
दुनिया तो करती ही रहती बदनाम
धत पगली ! ऐसी क्या होती है रीत
खोता है कोई क्या बचपन की प्रीत
साँसों में घुल जाता जब पहला प्यार
प्राणों से पहले कब निकला है, मीत !
इस पथ का राही हूँ ,मालूम है खूब
मर मर के जीना औ’ चलना है काम
किसकी यह पाती है ,जीवन के नाम
शाम ढले मिलती है मुझको गुमनाम।
-आनन्द.पाठक--
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