आप हुस्न-ओ-शबाब रखते हैं
इश्क़ मेरे भी ताब रखते हैं
जान लेकर चलें हथेली पे
हौसले इन्क़लाब रखते हैं
उनके दिल का हमें नहीं मालूम
हम दिल-ए-इज़्तिराब रखते हैं
जब भी उनके ख़याल में डूबे
सामने माहताब रखते हैं
आप को जब इसे उठाना है
आप फिर क्यूँ हिज़ाब रखते हैं ?
मौसिम-ए-गुल कभी तो आयेगा
हम भी आँखों में ख़्वाब रखते हैं
अब तो बस,बच गया जमीर ’आनन’
आज भी आब-ओ-ताब रखते हैं
-आनन्द.पाठक
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