शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 51

 आप हुस्न-ओ-शबाब रखते हैं

इश्क़ मेरे  भी  ताब रखते हैं

जान लेकर चलें हथेली  पे
हौसले इन्क़लाब  रखते  हैं

उनके दिल का हमें नहीं मालूम
हम दिल-ए-इज़्तिराब रखते हैं

जब भी उनके ख़याल में डूबे
सामने माहताब रखते  हैं

आप को जब इसे उठाना है
आप फिर क्यूँ हिज़ाब रखते हैं ?

मौसिम-ए-गुल कभी तो आयेगा
हम भी आँखों में ख़्वाब रखते हैं

अब तो बस,बच गया जमीर ’आनन
आज भी आब-ओ-ताब रखते हैं



-आनन्द.पाठक

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