बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
फ़ऊलुन----फ़ऊलुन---फ़ऊलुन फ़ऊलुन122-- -122--- --122---- 122
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मेरे दिल के धड़कन ने उनको पुकारा
ज़माने को हो ना सका ये गवारा
मुहब्बत में मुझको ख़बर ही कहाँ थी
कि तूफ़ाँ मिला कि मिला था किनारा ?
रह-ए-इश्क़ में ऐसे आये मराहिल
जो देखा नहीं वो भी देखा नज़ारा
तुम्हारे लिए ये हँसी-खेल होगा -
कभी दिल को तोड़ा कभी दिल संवारा
कोई अक्स दिल में उभरता नहीं अब
कि जब से तिरा अक्स दिल में उतारा
चला जो गया छोड़ कर इस मकां को
भला लौट कर कौन आया दुबारा ?
हुई रात "आनन’ की नींद आ रही है
कोई कर रहा अपनी जानिब इशारा
आनन्द.पाठक
c-01/19
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