मैं तेरे ’ब्लाग’ पे जाऊँ ,तू मेरे ’ब्लाग’ पे आ
मैं तेरी पीठ खुजाऊँ , तू मेरी पीठ खुजातू क्या लिखता रहता है , ये बात ख़ुदा ही जाने
मैने तुमको माना है , दुनिया माने ना माने
तू इक ’अज़ीम शायर’ है ,मैं इक ’सशक्त हस्ताक्षर
यह बात अलग है ,भ्राते ! हमको न कोई पहचाने
मैं तेरी नाक बचाऊँ ,तू मेरी नाक बचा
मैं तेरा नाम सुझाऊँ , तू मेरा नाम सुझा
कभी ’फ़ेसबुक’ पे लिख्खा जो तूने काव्य मसाला
याद आए मुझको तत्क्षण ,’दिनकर जी’-पंत-निराला
पहले भी नहीं समझा था , अब भी न समझ पाता हूँ
पर बिना पढ़े ही ’लाइक’ औ’ ’वाह’ वाह’ कर डाला
तू ’वाह’ वाह’ का प्यासा ,तू मुझको ’दाद’ दिला
मैं तेरी प्यास बुझाऊँ , तू मेरी प्यास बुझा
कुछ खर्चा-पानी का ’जुगाड़’ तू कर ले अगर कहीं से
कुछ ’पेन्शन फंड’ लगा दे या ले ले ’माहज़बीं’ से
हर मोड़ गली नुक्कड़ पे हैं हिन्दी की ’संस्थाएँ ’
तेरा ’सम्मान’ करा दूँ ,तू कह दे , जहाँ वहीं से
तू बिना हुए ’सम्मानित’ -जग से न कहीं उठ जा
मैं तुझ को ’शाल’ उढ़ाऊँ , तू मुझ को ’शाल उढ़ा
कुछ हिन्दी के सेवक हैं जो शिद्दत से लिखते हैं
कुछ ’काँव’ ’काँव’ करते हैं ,कुछ ’फ़ोटू’ में दिखते हैं
कुछ सचमुच ’काव्य रसिक’ हैं कुछ सतत साधनारत हैं
कुछ को ’कचरा’ दिखता है ,कुछ कचरा-सा बिकते हैं
मैं ’कचड़ा’ इधर बिखेरूँ , तू ’कचड़ा’ उधर गिरा
तेरी ’जयकार ’ करूँ मैं - तू मेरी ’जय ’ करा
[आहतजन का संगठित और समवेत स्वर में
’आनन’ के ख़िलाफ़ --उद्गार----]
बड़ ज्ञानी बने है फिरता -’आनन’ शायर का बच्चा
कुछ ’अल्लम-गल्लम’ लिखता- लिखने में अभी है कच्चा
’तुकबन्दी’ इधर उधर से बस ग़ज़ल समझने लगता
अपने को ’मीर’ समझता ,’ग़ालिब’ का लगता चच्चा
इस ’तीसमार’ ’शेख चिल्ली’ की कर दें खाट खड़ी
सब मिल कर ’आनन’ को इस ’ग्रुप’ से दें धकिया
-आनन्द.पाठक-
[नोट- माहजबीं--हर शायर की एक ’माहजबीं’ और हर कवि की एक ’चन्द्रमुखी’ होती है -
सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते और मैं ? न मैं शायर हूँ ,न कवि -----हा हा हा ----]
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