ग़ज़ल 68
रूठे हुए हैं यार ,मनाने की बात कर
दिल पे खिंची लकीर मिटाने की बात कर
दुनिया भी जानती थी जिसे,आम बात थी
बाक़ी बचा ही क्या ,न छुपाने कीबात कर
जो तू नहीं है ,उस को दिखाता है क्यों भला
जितना है बस वही तू दिखाने की बात कर
देखे नहीं है तूने चिरागों के हौसले
यूँ फूँक से न इनको डराने की बात कर
ये आग इश्क़ की लगी जो ,खुद-ब-खुद लगी
जब लग गई तो अब न बुझाने की बात कर
कुछ रोशनी भी आएगी ताज़ा हवा के साथ
दीवार उठ रही है , गिराने की बात कर
उठने लगा है फिर वही नफ़रत का इक धुँआ
’आनन’ के साथ चल के बुझाने की बात कर
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
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