22--22--22--22
ग़ज़ल 70
जादू है तो , उतरेगा ही
सच बोलूँगा , अखरेगा ही
दिल में जब बस हम ही हम हैं
कुनबा है तो बिखरेगा ही
अच्छे दिन जब फ़ानी थे तो
दौर-ए-ग़म भी गुज़रेगा ही
दरपन में जब वो आ जाए
सूना दरपन सँवरेगा ही
भटका है जो राह-ए-हक़ से
वक़्त आने पर मुकरेगा ही
होगा दिल जब उस का रौशन
फ़ित्नागर है ,सुधरेगा ही
साया हूँ उसका ही ’आनन’
रंग-ए-दिल कुछ उभरेगा ही
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
फ़ानी = ख़त्म होने वाला
दौर-ए-ग़म = मुसीबत के दिन
राह-ए-हक़ = सच्चाई के मार्ग से
फ़ित्नागर = दहशतगर्द /उपद्रवी
[सं 30-06-19]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें