मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु---फ़ाइलातु----मफ़ाईलु----फ़ाअ’लुन/फ़ाइलान221---------2121------1221-----212 /2121
सपनों में ’लोकपाल’ था मुठ्ठी में इन्क़लाब
’दिल्ली’ में जा के ’आप’ को क्या हो गया जनाब !
वादे किए थे आप ने ,जुमलों का क्या हुआ
अपने का छोड़ और का लेने लगे हिसाब ?
कुछ आँकड़ों में ’आप’ को जन्नत दिखाई दी
गुफ़्तार ’आप’ की हुआ करती है लाजवाब
लौटे हैं हाथ में लिए बुझते हुए चराग
निकले थे घर से लोग जो लाने को माहताब
चढ़ती नहीं है काठ की हाँडी ये बार बार
कीचड़ उछालने से ही होंगे न कामयाब
जो बात इब्तिदा में थी अब वो नहीं रही
अब वो नहीं है धार ,न तेवर ,न आब-ओ-ताब
गुमराह हो गया है मेरा मीर-ए-कारवां
’आनन’ दिखा रहा है वो फिर भी हसीन ख़्वाब
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
शब्दार्थ
आप [A.A.P] =Noun or pronoun जो आप समझ लें
गुफ़्तार = बातचीत
मीर-ए-कारवाँ = कारवां का नेतृत्व करने वाला
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