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मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
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जो जागे हैं मगर उठते नहीं उनको जगाना क्या
खुदी को ख़ुद जगाना है किसी के पास जाना क्या
निज़ाम -ए- दौर-ए-हाज़िर को बदलने जो चले थे तुम
बिके कुर्सी की खातिर तुम तो ,फिर झ्ण्डा उठाना क्या
ज़माने को ख़बर है सब तुम्हारी डींग-शेखी की
दिखे मासूम से चेहरे ,असल चेहरा छुपाना क्या
न चेहरे पे शिकन उसके ,न आँखों में नदामत है
न लानत ही समझता है तो फिर दरपन दिखाना क्या
तुम्हारी बन्द मुठ्ठी हम समझ बैठे थे लाखों की
खुली तो खाक थी फिर खाक कोअब आजमाना क्या
वही चेहरे ,वही मुद्दे ,वही फ़ित्ना-परस्ती है
सभी दल एक जैसे है ,नया दल क्या,पुराना क्या
इबारत है लिखी दीवार पर गर पढ़ सको ’आनन’
समझ जाओ इशारा क्या ,नताइज को बताना क्या
शब्दार्थ
निज़ाम-ए-दौर-ए-हाज़िर = वर्तमान काल की शासन व्यवस्था
नदामत = पश्चाताप/पछतावा
लानत = धिक्कार
फ़ित्ना परस्ती = दंगा/फ़साद को प्रश्रय देना
नताइज = नतीजे/ परिणाम
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
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