ग़ज़ल 187
221--2121--1221--212
वह रंग बदलता है सियासत के नाम पर
जो गुल खिला रहा है शराफ़त के नाम पर
अब बागबाँ का नाम हवा में उछल रहा
लूटा चमन को उसने हिफ़ाज़त के नाम पर
कुछ रोटियाँ हैं सेंकनी घर से निकल पड़े
अब वोट साधने हैं इयादत के नाम पर
आता है जब चुनाव का मौसम कभी इधर
कुछ झुनझुने थमा दिया राहत के नाम पर
कलियाँ अगर हैं गा रहीं तो गाने दो बेहिचक
रोको न उनको रस्म-ए-नसीहत के नाम पर
वादे तमाम वादे है, सौगात सैकड़ों
कब तक छला करोगे यूँ ग़ुरबत के नाम पर
दुनिया बदल गई है ,हवाएँ बदल गईं
’आनन’ तू रो रहा है रवायत के नाम पर
=आनन्द.पाठक-
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