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ग़ज़ल 189
जो रंग अस्ल है वो दिखाएगा एक दिन
वो सरफ़िरा है होश में आएगा एक दिन
नफ़रत के शह्र में भरा बारूद का धुआँ
पैग़ाम-ए-इश्क़ कोई सुनायेगा एक दिन
कुछ लोग हैं कि अम्न के दुश्मन बने हुए
यह वक़्त उनको खुद ही मिटाएगा एक दिन
किस बात पर गुरूर है ,किस बात का नशा
सब कुछ यहीं तू छोड़ के जाएगा एक दिन
हम तो इसी उमीद में करते रहे वफ़ा
वह भी वफ़ा का फ़र्ज़ निभाएगा एक दिन
वैसे हज़ार बार वो इनकार कर चुका
आने को कह गया है तो आएगा एक दिन
’आनन’ उमीद रख अभी आदम के हुनर पर
सूरज उतार कर यही लाएगा एक दिन
-आनन्द,पाठक-
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