ग़ज़ल 224
2122—1212—22
एक रिश्ता जो ग़ायबाना1 है ,
उम्र भर वह हमें निभाना है ।
इतनी ताक़त दे ऎ ख़ुदा मेरे !
आज उनसे नज़र मिलाना है ।
शेख जी ! फिर वही रटी बातें ?
और क्या कुछ नया बताना है ?
रंग-सा घुल गई समन्दर में ,
बूँद का बस यही फ़साना है ।
वो पुकारेगा जब कभी मुझको,
काम हो लाख , छोड़ जाना है।
तेरी आदत वही पुरानी है -
ज़ख़्म देकर के भूल जाना है ।
बात सबकी सुना करो ’आनन’ ,
जो कहे दिल वो आज़माना है ।
-आनन्द.पाठक-
1- 1- परोक्ष में. छिपा छिपा
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