सोमवार, 2 मई 2022

ग़ज़ल 227

 ग़ज़ल 227 [91]


1222--1222--1222--12


यूँ उनकी शान के आगे है  मेरी शान क्या  !

इनायत हो न जब उनकी मेरी पहचान क्या !


हवा नफ़रत जो फ़ैलाए तो है किस काम की

न फैलाएअगर ख़ुशबू हवा का मान क्या


गिरह तू चाहता है खोलना ,खुलती नहीं

तेरा अख़्लाक़ क्या है ताक़त-ए-ईमान क्या  !


शराइत हैं हज़ारों जब, हज़ारों बंदिशें

तुम्हारे दर तलक जाना कहीं आसान क्या !


दिखाता राह इन्सां को मुहब्बत का दिया

जले ना आग सीने में तो फिर इन्सान क्या


कभी तुमने नहीं देखा ख़ुद अपने आप को

वगरना ज़िंदगी होती कभी अनजान क्या


जो कहना चाहते हो तुम ज़रा खुल कर कहो

तुम्हारी चाहतें क्या ,ख़्वाब क्या, अरमान क्या


अक़ीदत हो तुम्हारे दिल में हो जो हौसला

तो  ’आनन’ सामने हो आँधियाँ तूफ़ान क्या !


-आनन्द.पाठक-


शराइत = शर्तें

अक़ीद्त = श्रद्धा विश्वास


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