रविवार, 23 अक्तूबर 2022

ग़ज़ल 270

 

1222---1222--1222---1222
मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
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ग़ज़ल 270 [35 E]

तू उतना ही चलेगा , वह तुम्हें जितना चलाएगा
भरेगा चाबियाँ उतनी तू जितना नाच पाएगा ।

हक़ीक़त जानता है वह, हक़ीक़त जानते हम भी
वतन ख़ुशहाल है अपना, वो टी0वी0 पर दिखाएगा

उजालों से इधर बातें ,अँधेरों से उधर यारी
खुदा जाने है क्या दिल में, नही वह सच बताएगा।

 ख़रीदेगा वो पैसों से, अगर बिकने पे तुम राजी
तुम्हें वह "पंच तारा" होटलों मे क्या छुपाएगा

ज़ुबाँ होगी तुम्हारी और उसकी बात बोलेगी
तुम्हें कहना वही होगा तुम्हें वह जो बताएगा

निगाहों में अगर खुद को नहीं ज़िंदा रखोगे तुम
ज़माना उँगलियों पर ही सदा तुमको नचाएगा

जो सुन कर भी नहीं सुनते, जो अंधे बन गए’आनन’
जगाने से नहीं जगते, उन्हें कब तक जगाएगा

-आनन्द.पाठक-

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