अनुभूतियाँ 106
421
जाने क्या है चाहे जितनी
लरज गरज कर बदली बरसी।
प्यास है ऐसी, बुझी न अबतक
प्यासी धरती फिर से तरसी ।
422
कहने की तो बात नहीं है
बिना कहे दिल रह ना पाए
दर से जिसको उठा दिए तुम
अब वो कहाँ किधर को जाए?
423
जितनी बार मिली तुम मुझ से
नज़र झुकाए देखा मैने,
मर्यादा की जो रेखा थी
पार न की वो रेखा मैने ।
424
उतना ही सच नहीं कि जितना
ये आंखें जो देखा करती ,
परदे के पीछे भी सच है
मै ही क्या सब दुनिया कहती।
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