शनिवार, 26 अगस्त 2023

अनुभूतियाँ 109

अनुभूतियाँ 109


433

ऐसे लोग बहुत हैं जिनको

साँस-साँस बन मिला न कोई,

उम्र प्रतीक्षा में कट जाती

फिर भी शिकवा गिला न कोई।

 

434

तेरी आँखों से पढ़ता हूँ

अपनी कुछ अनकही कहानी

खिलने से पहले ही कैसे

ढल जाती है भरी जवानी

 

435

अपनी चाहत फ़ना हुई है

एक आख़िरी चाह बची है

आ जाओ तो ठीक है वरना

एक आख़िरी राह बची है

 

436

तुम्ही समाए हो जब अन्दर

तो  फिर मै बाहर क्यों देखूँ ?

 अपना ही मन काबा-काशी

और किसी का दर क्यों देखूँ ?


 

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