अनुभूतियाँ 111
441
गिरना-पड़ना, उठना-चलना
पाना-खोना, हँसना-रोना ,
प्यार-मुहब्बत, मिलन जुदाई
जब तक साँस तभी तक होना ।
442
पीड़ा की अपनी पीड़ा है
दुनिया कहाँ सुना करती है ?
अपना ही बस गाती रहती
अपनी राह चला करती है ।
443
आँख भिगोने वाली बातें
क्यों करती तुम गाहे, गाहे,
द्वार हृदय का खुला हुआ है
आ जाना तुम जब दिल चाहे ।
444
पाप-पुण्य का बोझ उठाए
घूम रही हो तुम दुनियाभर
सत्य विवेचन कर देगा मन
झाँकोगी जब मन के अन्दर
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