ग़ज़ल 322(87E)
न आए , तुम नहीं आए, बहाना क्या
गिला शिकवा शिकायत क्या सुनाना क्या
कभी तोड़ा नही वादा लब ए दम तक
ये दिल की बात है अपनी बताना क्या
नफा नुकसान की बातें मुहब्बत में
इबादत मे तिजारत को मिलाना क्या
हसीं तुम हो, खुदा की कारसाजी है
तो फिर पर्दे मे क्यों रहना, छुपाना क्या
भरोसा क्यों नहीं होता तुम्हे खुद पर
मुहब्बत को हमेशा आजमाना क्या
अगर तुमने नहीं समझा तो फिर छोड़ो
हमारा दर्द समझेगा जमाना क्या
अगर दिल से नहीं कोई मिले 'आनन'
दिखावे का ये फिर मिलना मिलाना क्या
-आनन्द पाठक-
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