ग़ज़ल 348[23]
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समन्दर की व्यथा क्या है
ये नदिया को पता क्या है
उड़ानों में परिंदो से
न पूछो मर्तबा क्या है
जो पगड़ी बेंच दी तुमने
तो बाक़ी अब बचा क्या है
किसी के वास्ते हमदम !
समय रुकता भला क्या है ?
गले सबको लगा .प्यारे!
कि दुनिया में रखा क्या है ।
मुहब्बत में फ़ना होना
तो इसमें कुछ नया क्या है ।
हिमायत सच की करते हो
अरे! तुमको हुआ क्या है
कभी मिलना जो ’आनन’ से
समझ लोगे वफ़ा क्या है ।
-आनन्द.पाठक-
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