शुक्रवार, 1 मार्च 2024

ग़ज़ल 348

  ग़ज़ल 348[23]


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समन्दर की व्यथा क्या है

ये नदिया को पता क्या है


उड़ानों में परिंदो से

न पूछो मर्तबा क्या है


जो पगड़ी बेंच दी तुमने

तो बाक़ी अब बचा क्या है


किसी के वास्ते हमदम !

समय रुकता भला क्या है ?


गले सबको लगा .प्यारे!

कि दुनिया में रखा क्या है ।


मुहब्बत में फ़ना होना

तो इसमें कुछ नया क्या है ।


हिमायत सच की करते हो

अरे! तुमको हुआ क्या है


कभी मिलना जो ’आनन’ से

समझ लोगे वफ़ा क्या है ।



-आनन्द.पाठक-


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