अनुभूतियाँ 126/13
:1:
क़समें खाना, वादे करना
वचन निभाना आता है क्या ?
रात घनेरी जब जब होगी
दीप जलाना आता है क्या ?
वचन निभाना आता है क्या ?
रात घनेरी जब जब होगी
दीप जलाना आता है क्या ?
:2:
रंज किसी का, गुस्सा मुझ पर
ये तो कोई बात न होती ।
अगर नहीं तुम अपने होते
किसके काँधे सर रख रोती ।
:3:
बीत गई जो बातें छोड़ॊ
गुस्सा थूको, अब तो हँस दो
मैं हारी अब गले लगा लो
भुजपाशों का बंधन कस दो
:4:
हाथ बढ़ा फिर हाथ खीचना
नई तुम्हारी आदत देखी
फिर भी मैने किया भरोसा
मेरी नहीं शराफत देखी
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें