शनिवार, 6 अप्रैल 2024

अनुभूतियाँ 130/17

  130/17


:1:

इतना भी आसान नहीं है

इल्म-ए-सदाक़त, इल्म-ए-दियानत

वरना तो ता उम्र ज़िंदगी

भेजा करती रह्ती लानत


:2:

दिल से जब मिट जाए जिस दिन

इस्याँ और गुनह तारीक़ी

जाग उठेंगे तब उस दिन से

इश्क़ रुहानी , इश्क़-ए- हक़ीक़ी


:3:

सतरंगी अनुभूति मेरी

श्वेत-श्याम सा अनुभव भी है

भोगी हुई व्यथाएँ शामिल

कुछ खुशियों के कलरव भी है


:4:

एक बार प्रभु ! ऐसा कर दो

अन्तर्मन में ज्योति जगा दो

काम क्रोध मद मोह तमिस्रा

मन की माया दूर भगा दो ।


-आनन्द.पाठक-


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