ग़ज़ल 360/35 : लोग सुनेंगे हँस कर अपनी--
21--121--121---121---121--122 =24
सोए जो दिन रात, जगाने से क्या होगा
बहरों को आवाज़ लगाने से क्या होगा
बहरों को आवाज़ लगाने से क्या होगा
लोग सुनेंगे हँस कर अपनी राह लगेंगे
महफ़िल महफ़िल दर्द सुनाने से क्या होगा !
आज नहीं तो कल सच का सूरज निकलेगा
झूठ अनर्गल बात बनाने से क्या होगा !
जब दामन के दाग़ बज़ाहिर दिखते हो
फिर दुनिया से दाग़ छुपाने से क्या होगा !
सत्ता की साज़िश में थे जब तुम भी शामिल
तुमसे फिर उम्मीद लगाने से क्या होगा !
ऊँची ऊँची आदर्शों की बातें करना-
सिर्फ़ हवा में गाल बजाने से क्या होगा !
प्रश्न तुम्हारा ’आनन’ नाक़िस बेमानी है
तुम क्या जानो दीप जलाने से क्या होगा !
-आनन्द.पाठक-
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