ग़ज़ल 362
2122---1212---22
हम तेरा एहतराम करते हैं
याद भी सुबह-ओ-शाम करते हैं ।
नक्श-ए-पा जब कहीं दिखा तेरा
सर झुका कर सलाम करते हैं।
सादगी भी तेरी क़यामत है
बात यह ख़ास-ओ-आम करते हैं ।
इश्क़ के जानते नताइज़, सब
इश्क़ फिर भी तमाम करते हैं ।
क्या तुम्हें दे सकेंगे हम, जानम !
ज़िंदगी तेरे नाम करते हैं ।
उनको इस बात की ख़बर ही नहीं
मेरे दिल में क़याम करते हैं ।
कब वो वादा निभाते हैं ’आनन’
हम निभाने का काम करते हैं ।
-आनन्द.पाठक-
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