ग़ज़ल 378 [ 60-अ]
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ऐसी भी हो ख़बर कोई अख़बार में लिखा ,
’कलियुग’ से पूछता कोई ’सतयुग’ का है पता ।
समझा करेंगे लोग उसे एक सरफिरा ,
जब इक शरीफ़ आदमी था रात में दिखा ।
बेमौत एक दिन वो मरेगा मेरी तरह
इस शहर में’उसूल’ की गठरी उठा उठा।
जब से ख़रीद-बेच की दुनिया ये हो गई,
मुशकिल है आदमी को कि अपने को ले बचा।
हर सिम्त शोर सुन रहे हैं जंग-ए-अज़ीम का ,
इन्सानियत को तू भी दिल-ओ-जान से बचा ।
मासूम दिल के साफ़ थे तो क़ैद मे रहे
अब हैं नक़ाबपोश , जमानत पे हैं रिहा ।
क्यों तस्करों के शहर में ’आनन’ तू आ गया,
तुझ पर हँसेंगे लोग अँगूठे दिखा दिखा ।
-आनन्द पाठक-
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