गुरुवार, 11 जुलाई 2024

ग़ज़ल 378

  ग़ज़ल 378 [ 60-अ]

221---2121---1221---212


ऐसी भी हो ख़बर कोई अख़बार में लिखा ,

’कलियुग’ से पूछता कोई ’सतयुग’ का है पता ।


समझा करेंगे लोग उसे एक सरफिरा ,

जब इक शरीफ़ आदमी था रात में दिखा ।


बेमौत एक दिन वो मरेगा मेरी तरह

इस शहर में’उसूल’ की गठरी उठा उठा।


जब से ख़रीद-बेच की दुनिया ये हो गई,

मुशकिल है आदमी को कि अपने को ले बचा।


हर सिम्त शोर सुन रहे हैं जंग-ए-अज़ीम का ,

इन्सानियत को तू भी  दिल-ओ-जान से बचा ।


मासूम दिल के साफ़ थे तो क़ैद मे रहे

अब हैं नक़ाबपोश , जमानत पे हैं रिहा ।


क्यों तस्करों के शहर में ’आनन’ तू आ गया,

तुझ पर हँसेंगे लोग अँगूठे दिखा दिखा ।


-आनन्द पाठक-


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