ग़ज़ल 384[48F]
2122---1212---22
ज़िंदगी! और क्या सुनाना है
कर्ज़ तेरा हमे चुकाना है ।
ज़िंदगी दूर दूर ही रहती
पास अपने उसे बिठाना है ।
उनके आने की क्या ख़बरआई
फिर मिला जीने का बहाना है ।
बात दैर-ओ-हरम की क्या उनसे
जिनको उस राह पर न जाना है ।
रंग ऐसा चढ़ा नहीं उतरा
जानता क्या नहीं जमाना है
इन तक़ारीर के सबब क्या हैं
राज़ ही जब नही बताना है ।
जो अँधेरों में अब तलक बैठे
उनके दिल में दिया जलाना है ।
बेसबब क्यों भटक रहा ’आनन’
दिल में ही उसका जब ठिकाना है ?
-आनन्द.पाठक-
सं 01-07-24
तक़ारीर =प्रवचन
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