शनिवार, 20 जुलाई 2024

ग़ज़ल 403

  ग़ज़ल 403 [ 59-फ़]

2122---1212---22


इश्क़ की एक ही कहानी है

रंज़-ओ-ग़म की ये तर्जुमानी है ।


उम्र भर का ये इक तकाज़ा है,

चन्द लम्हों की शादमानी  है ।


प्यार करना है आ गले लग जा

चार दिन की ये जिंदगानी है ।


रंग-ए-दुनिया अगर बदलना हो

लौ मुहब्बत की इक जगानी है ।


ज़िंदगी ख़ुशनुमा नज़र आती

इश्क़ ही की ये मेहरबानी है ।


प्यार कतरा में इक समन्दर है

बात यह रोज़ क्या बतानी है ।


जानना राह-ए- इश्क़ क्या ’आनन’?

जानता हूँ कि राह-ए-फ़ानी है ।


-आनन्द पाठक--


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