ग़ज़ल 403 [ 59-फ़]
2122---1212---22
इश्क़ की एक ही कहानी है
रंज़-ओ-ग़म की ये तर्जुमानी है ।
उम्र भर का ये इक तकाज़ा है,
चन्द लम्हों की शादमानी है ।
प्यार करना है आ गले लग जा
चार दिन की ये जिंदगानी है ।
रंग-ए-दुनिया अगर बदलना हो
लौ मुहब्बत की इक जगानी है ।
ज़िंदगी ख़ुशनुमा नज़र आती
इश्क़ ही की ये मेहरबानी है ।
प्यार कतरा में इक समन्दर है
बात यह रोज़ क्या बतानी है ।
जानना राह-ए- इश्क़ क्या ’आनन’?
जानता हूँ कि राह-ए-फ़ानी है ।
-आनन्द पाठक--
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