-आनन्द.पाठक-
चन्द माहिए 105/15 [ उस पार]
:1:
कलियाँ हैं जन्नत की
ख़ूशबू आती है
माली के मिहनत की ।
:2:
कुदरत का करिश्मा है
कौन समझ पाया
उसकी क्या सीमा है ।
:3;
दर्या यह गहरा है
डूबा जो इसमें
फिर कब वो उबरा है!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें